जिला क्षत्रिय महासभा के युवा सम्मेलन को विधानसभा अध्यक्ष ने संबोधित किया

सागर क्षत्रिय समाज सर्व समाज को अपने छाते में स्वीकार करे क्षत्रिय समाज शिक्षित बने कमजोरों को सहायता देकर बराबरी पर लाए भारत माता का वैभव  वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के लिए राष्ट्रवाद की दिशा में आगे बढ़े यह उद्गार मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह ने रुद्राक्षधाम स्टेडियम में जिला क्षत्रिय महासभा द्वारा आयोजित क्षत्रिय युवा सम्मेलन में व्यक्त किए उन्होंने कहा कि आजादी की सौवीं वर्षगांठ जब हम मनाएं तो एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना साकार हो और भारत दुनिया का नेतृत्व करे। 
सम्मेलन में हजारों की संख्या में जुटे क्षत्रिय समाज के युवाओं और वरिष्ठजनों को संबोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि 21 वीं सदी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसा ताकतवर नेतृत्व हमारे देश को प्राप्त हुआ है उन्होंने विश्व में देश की साख बढ़ाई है उन्होंने कहा कि किसी भी देश की सबसे बड़ी शक्ति उसका मानव संसाधन होता है यदि यह संसाधन युवा है तो यह ताकत और बढ़ जाती है दुनिया के तमाम देश बूढ़े हो रहे हैं लेकिन हिंदुस्तान की आधी से अधिक आबादी युवा है जब जब युवाओं ने करवट बदली संकल्प और संघर्ष किया है तो निश्चित रूप से परिवर्तन आया है विधानसभा अध्यक्ष तोमर ने कहा कि हमारी संस्कृति और आध्यात्म में हाड़ मांस के शरीर, पैसों और पद की पूजा नहीं होती यहां कर्म और सद्गुणों की पूजा होती है यहां प्रभु श्री राम, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, बुंदल केसरी महाराज छत्रसाल की तस्वीरों पर दीप प्रज्ज्वलित और पुष्पांजलि अर्पित की गई इन चारों विभूतियों के प्रेरणास्पद व्यक्तित्व कृतित्व को यदि युवा तरुणाई पढ़ेगी तो भारत के भविष्य में योगदान कर सकेगी उन्होंने कहा कि यह चारों महापुरुष युवावस्था में संघर्ष का उदाहरण रहे हैं आध्यात्मिक गुरु आदिशंकराचार्य ने जब भारतभूमि का भ्रमण किया और चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की तब उन्होंने हमारे धर्म और समाज को एक सूत्र में बांध दिया। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने जब यह सब किया तो वे युवा ही थे स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धरती पर धर्म सम्मेलन में जब सनातन और हिंदुत्व की पताका फहराई तब वे युवा ही थे रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 में जब स्वंतत्रता संग्राम में देश का नेतृत्व किया और प्राण न्यौछावर किए तब वे मात्र 23 वर्ष की थीं उनके इस संघर्ष को भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव , राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल,अऔर अश्फाक उल्ला ने आगे बढ़ा कर समझौते की बजाय फांसी के फंदे चूमे तब ये सभी युवा थे

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