सागर.महान दानवीर, विधिवेत्ता एवं डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के संस्थापक सर डॉ हरीसिंह गौर की 155वीं जयन्ती के अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने सागर शहर के तीनबत्ती पहुँचकर डॉ. गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और सभा को संबोधित किया.उन्होंने बुन्देली संकल्प के अद्वितीय नायक डॉ.सर हरीसिंह गौर की जयंती पर सभी नगरवासियों का अभिनन्दन करते हुए हार्दिक शुभकामनाएं दीं.उन्होंने कहा आज का दिन हमारे लिए विशेष अर्थ रखता है क्योंकि आज के ही दिन इस धरती पर डॉ. हरीसिंह गौर जैसे महान शक्सियत ने जन्म लिया था। आज का दिन महज कैलेण्डर का एक पन्ना नहीं, बल्कि बुन्देलखण्ड के इतिहास का एक खूबसूरत पैगाम है। एक ऐसा पैगाम जिससे जुड़कर हजारों-लाखों लोगों के जीवन में ज्ञान का वसंत आया। आप भाग्यशाली हैं कि आप डॉ. गौर के शहर के वासिन्दें हैं। आप सभी गौर साहब के जीवन और सृजन से खूब परिचित हैं।उन्होंने डॉ.गौर के जीवन की संघर्ष यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ते हुए उनके चिरागी व्यक्तित्व का निर्माण हुआअपनी मातृभूमि के लिए कुछ श्रेष्ठ करने का संकल्प कभी नहीं छूटा। अपनी प्रतिभा से ज्ञान,राजनीति,पत्रकारिता, सृजनात्मकता आदि सभी क्षेत्रों में लगभग दिग्विजय प्राप्त करते हुए उन्होंने अपने समकालीन बड़ी हस्तियों को चौंका दिया। डॉ. गौर का यह जीवन हम सबके लिए एक मिसाल है। दुःख को शक्ति में, अभाव को सृजन में और संघर्ष को कैसे संकल्प में बदला जाता है, हमारे लिए यही गौर साहब की सीख है।एक श्रेष्ठ अधिवक्ता, विधि विशेषज्ञ,संविधान सभा के सदस्य, लेखक-कवि, धर्मज्ञ, शिक्षाविद, समाजसेवी,दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्थापक और नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति आदि भूमिकाओं में अपनी क्षमता और प्रतिभा से पूरे देश को प्रभावित किया। किन्तु अपार यश और समृद्धि के वैभव के बीच में भी उनकी मातृभूमि सागर की आकुल पुकार उनसे विस्मृत न हो सकी। 18 जुलाई, 1946 को अपनी पूरी सम्पत्ति का दान कर सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की। डॉ. गौर द्वारा स्थापित यह विश्वविद्यालय अपनी स्थापना काल से ही अपने विशिष्ट ज्ञान और अनुसंधान के साथ राष्ट्र की प्रगति में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा है।
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